लखनऊ। मस्तिष्क में ब्लड सर्कु लेशन बाधित होने और ब्लड क्लाटिंग जमने से ब्रेन स्ट्रोक होता है। इसका सीधा प्रभाव शरीर के विभिन्न अंगों पर पड़ता है। इस कारण कई बार पीड़ित व्यक्ति मानसिक या फिर शारीरिक रूप से कमजोर भी हो सकता है। ब्रेन स्ट्रोक एक मेडिकल इमरजेंसी है,ऐसे में स्ट्रोक आने पर मरीज को गोल्डन ऑवर के अंदर इमरजेंसी में विशेषज्ञ के पास ले जाना चाहिए,ताकि मरीज का इलाज तीन घंटे के अंदर शुरू हो सके।
यह बात शनिवार को डॉ.राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के मिनी कॉन्फ्रेंस हॉल में स्ट्रोक पुनर्वास पर आयोजित दो दिवसीय चिकित्सा शिक्षा कार्यक्रम आयोजक सह सचिव डॉ.सत्यशील अस्थाना ने दी ।
उन्होंने कहा कि जब ब्रोन स्ट्रोक होता है, तो समय पर उसके लक्षणों की पहचान जरूरी है, जिससे शरीर के अंगों पर होने वाल नुकसान को कम हो सके। इसलिए गोल्डन ऑवर में तीन से चार घंटे का वक्त हो सकता है। इस दौरान मरीज को सही वक्त पर सही इलाज मिल जाने पर मरीज को बचाया जा सकता जाता है। इसके अलावा अंगों पर प्रभाव न हो, इसके लिए ब्रोन स्ट्रोक के मरीज का इलाज कर रहे डाक्टर को भी सर्तक रहना चाहिए। इस दौरान मरीज को तत्काल फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैबिलिटेशन (पीएमआर) के विशेषज्ञ डाक्टरों से भी परामर्श लेना चाहिए, जिससे हाथ पैर व शरीर के अन्य अंगों पर पड़े लकवे के असर को कम किया जा सकता है। पीजीआई के पीएमआर विभाग के प्रो.सिद्धार्थ ने बताया कि स्ट्रोक या फालिज के इलाज में अब जिस नयी तकनीक से इलाज हो रहा है,उसका नाम वर्चुअल रियल्टी है। इस नयी तकनीक में मरीजों को वर्चुअल रियल्टी तकनीक से इलाज दिया जाता है। इसमें उपकरणों की मदद ली जाती है। इस तकनीक में मरीज स्वयं से गेम खेलता है। इस दौरान सामने लगी स्क्रीन पर मरीज जो भी कार्य कर रहा होता है वह दिखाई पड़ता है, जो मरीज के लिए प्रेरणा का काम करता है। इससे मरीज के स्वास्थ्य में सुधार होता देखा गया है। लोहियासंस्थान के पीएमआर विभाग के असिस्टेंट डा.जावेद अहमद ने बताया कि मस्तिष्क के जिस हिस्से पर पक्षाघात होता है,उससे संबंधित अंग काम करना बंद कर देते हैं। ऐसे में कान्सट्रेंट इंड्यूजड मूवमेंट थेरेपी (सीआईएमटी) के माध्यम से मस्तिष्क के उस हिस्से को काम करने के लिए प्रेरित किया जाता है,जिस पर पक्षाघात हुआ है। उदाहरण के तौर पर उन्होंने बताया कि पक्षाघात के बाद यदि उसका असर बांये हाथ पर पड़ा है तो दांये हाथ को बांध कर मरीज के बांये हाथ से काम करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
केजीएमयू के फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर (पीएमआर) के विभाग प्रमुख प्रो.अनिल गुप्ता के मुताबिक ब्रोन स्ट्रोक होने पर मरीज के शारीरिक अंगों पर भी गहरा असर पड़ता है,लकवा ग्रस्त होने पर हाथ व पैर भी काम करना बंद कर सकते हैं। ऐसे में मरीज का इलाज शारीरिक व मानसिक दोनों स्तर पर किया जाना जरूरी होता है। जिसमें फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैबिलिटेशन विभाग के चिकित्सक अहम भूमिका निभाते हैं। जिस व्यक्ति को ब्रेन स्ट्रोक होता है उसे बोलने,चलने या फिर हाथ उठाने में दिक्कत हो सकती है। समय पर इलाज नहीं होने से किडनी तक खराब हो सकती है।
इसके लिए पीएमआर विभाग में दवा के साथ मरीज को अभ्यास व प्रशिक्षण देकर इलाज दिया जाता है। उन्होंने कहा कि समय पर इलाज तभी मिलेगा जब लोग ब्रोन स्ट्रोक व मरीज के पुनर्वास को लेकर जागरूक होंगे।