लखनऊ। यूनानी चिकित्सा के अनुसंधान में आधुनिक विज्ञान को शामिल करना जरूरी है। यह बात बुधवार को केन्द्रीय यूनानी चिकित्सा अनुसंधान संस्थान में आयुष मंत्रालय, भारत सरकार की ओर से ‘बौद्धिक सम्पदा अधिकार” विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार की अध्यक्षता करते हुए आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के अपर सचिव प्रमोद कुमार पाठक ने कही। सेमिनार में परिषद के महानिदेशक प्रो. आसिम अली खां ने यूनानी चिकित्सा में अनुसंधान अधिकारियों तथा अध्यापकों के लिए बौद्धिक सम्पदा अधिकार के महत्व एवं इसकी आवश्यकता के बारे में बताया।
आयुष मंत्रालय के सलाहकार डा. मो. ताहिर ने बौद्धिक सम्पदा अधिकार के महत्व को बताते हुए कहा कि बौद्धिक सम्पदा अधिकार को दूसरे वैज्ञानिक संस्थानों में शामिल करने की जरूरत है। डा. एच. पुरुषोत्म ने कहा कि यूनानी चिकित्सा आैर विज्ञान को एक साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है। संस्थान के उपनिदेशक प्रभारी डा. मकबूल अहमद खां ने सभी अतिथियों को धन्यवाद दिया तथा संस्थान का संक्षिप्त में इतिहास बताया। इसके अतिरिक्त भविष्य की परियोजनाओं के संबंध में जानकारी देते हुए उच्च अधिकारियों से निवेदन किया कि वह इस संस्थान को राष्ट्रीय केन्द्र का दर्जा प्रदान करें।
सेमिनार में डा. पुरुषोत्तम, डा. मो. ताहिर, डा. कैलाश चन्द्र, डा. विवेक श्रीवास्तव, डा. एस.आर. कुल्करनी, डा. पूनम सिंह आदि वैज्ञानिकों ने अपने पेपर प्रस्तुत किए। इस अवसर पर डा. नफासत अली अंसारी, डा. हस्सान नगरामी, प्रो. करुणा शंकर, डा. एम.पी. दारोकर, डा. सैन्बी, डा. रज्मी यूनुस, डा. अब्दुल हलीम, डा. जमाल अख्तर, डा. जियाउल हक सिद्दीकी सहित दूसरे तिब्बी संस्थानों के अधिकारी एवं चिकित्सक उपस्थित थे।
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