लखनऊ । विश्व क्षय रोग दिवस पर कई कार्यक्रम हुए, इनमें टीबी के प्रति जागरूकता फैलायी गयी, ताकि इस बीमारी की शरुआती चरण में पहचान हो सके। उत्तर प्रदेश टीबी एसोसिएशन ऑफ इंडिया के तत्वावधान में बक्शी का तालाब स्थित चंद्रभानु गुप्ता कृषि महाविद्यालय में टीबी की पाठशाला लगायी गयी, इसमें एसोसिएशन के सचिव डा. टीपी सिंह ने टीब की पहचान आैर उपचार के बारे में विस्तार से जानकारी दी। वरिष्ठ उपाध्यक्ष डा. राजेन्द्र प्रसाद ने बताया कि सरकारी अस्पतालों में टीबी का नि:शुल्क जांच व उपचार मौजूद है। इसके अलावा प्राइवेट संस्थानों में इलाज होता है। रोजाना करीब पंद्रह रूप दवा का खर्च आता है। छह माह का कोर्स होता है, इसे बीच नहीं छोड़ना चाहिए। दूसरी तरफ किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) में रेस्पिरेटरी मेडिसिन एवं पल्मोनरी क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के संयुक्त तत्वाधान के रोगी जागरुकता शिविर का अयोजन किया गया।
विभागाध्यक्ष डा. सूर्यकान्त, डा. अजय कुमार वर्मा, डा. आनन्द श्रीवास्तव, डा. दर्शन कुमार बजाज, डा. अम्बारीश, डा. अनुभूति व समस्त जूनियर डाक्टर उपस्थित रहे। पीजीआई में आयोजित सीएमई में प्रो. राजेन्द्र प्रसाद ने कहा कि क्षय रोग की पहली अवस्था में इलाज पूरा नहीं कराने पर या दवाएं लेना बीच में छोड़ देने पर एमडीआर टीबी (मल्ट्री ड्रग रेजिस्टेंस) हो जाता है। इस अवस्था में कुछ दवाएं क्षय रोग के जीवाणु से लड़ने में सक्षम नहीं रह जाती है। इस मौके पर गुर्दा रोग विशेषज्ञ नारायन प्रसाद, प्रो. धर्मेन्द्र भदौरिया, प्रो. अमित गोयल, प्रो. रिचा मिश्रा ने भी टीबी रोग से संबंधित सवाल पूछे।