ऑस्टियोआर्थराइटिस यानि जोड़ों के दर्द से उबरने के लिए कोई भी तकनीक कारगर नहीं है। रिसर्चरों का कहना है कि सिर्फ व्यायाम ही इसमें मददगार साबित हो सकता है। अब 66 साल के हो चले वैर्नर डाउ को 15 साल पहले उनके बाएं कंधे में जबरदस्त दर्द शुरू हुआ। इसके चलते वे हिलने डुलने लायक नहीं रहे। वे बताते हैं, ‘अगर मैं ना हिलूं तो मुझे दर्द होता था और जब मैं हिलता तो और भी अधिक दर्द होता था।’
उन्होंने इस दर्द से जूझने के लिए गर्माहट और दवाओं की मदद ली। वे कहते हैं कि इससे ये गया तो नहीं, लगातार बना रहा। अब उन्हें दाहिने कूल्हे में और घुटने में ऑस्टियोआर्थराइटिस की शिकायत है। जर्मन ऑस्टियोआर्थराइटिस ऐड नाम के एक गैर व्यावसायिक सूचना समूह का कहना है कि ऑस्टियोआर्थराइटिस जर्मनी में सबसे आम बीमारी है। इससे तकरीबन आबादी का 6 फीसद हिस्सा जूझ रहा है।
ये मुलायम और लोचदार टिशु से बनी होती है जो हड्डियों को झटके झेलने में मदद करती है –
इस बीमारी के चलते अक्सर हाथों, घुटने और कूल्हों के जोड़ पर असर पड़ता है। जर्मन गठिया रोग परिषद के अध्यक्ष एरिका ग्रोम्निका इले बताती हैं कि हड्डियों के सिरे आपस में कार्टिलेज यानि एक नरम हड्डी से जुड़े होते हैं। ये मुलायम और लोचदार टिशु से बनी होती है जो हड्डियों को झटके झेलने में मदद करती है। कार्टिलेज में श्लेष झिल्ली में बनने वाले द्रव के चलते चिकनाई होती है, जो हड्डी को घूमने में मदद पहुंचाती है। ऑस्टियो आर्थराइटिस इसी सुरक्षात्मक कार्टिलेज के घिसकर पतले हो जाने की वजह से होता है। ये जोड़ों पर चोट लगने पर भी हो सकता है, मसलन खेल के दौरान या किसी दुर्घटना में। ऑस्टियो आर्थराइटिस हो जाने की एक वजह जोड़ों पर बहुत ज्यादा दबाव पड़ना भी है।
इस रोग के चलते अधिक से अधिक कार्टिलेज का क्षरण होता है –
चाहे वो मोटापे के चलते हो, या गलत ढंग से उठने बैठने की आदत के चलते या घुटनों के किसी विकार के कारण। ऑस्टियो आर्थराइटिस के बढ़ने का खतरा बढ़ती उम्र के साथ बढ़ता जाता है लेकिन कुछ लोगों में ये आनुवांशिक तौर पर कम उम्र में भी हो जाता है। विशेषज्ञ किसी भी जोड़ में ऑस्टियोआर्थराइटिस की शिकायत को तब तक नहीं स्वीकारते हैं जब तक हड्डी के नीचे पतली हो गई कार्टिलेज मोटी होनी ना शुरू हो जाए। इस रोग के चलते अधिक से अधिक कार्टिलेज का क्षरण होता है और कई बार तो हड्डी दूसरी हड्डी से टकराना शुरू कर देती है।