लखनऊ। कही भी इंटेसिव केयर यूनिट (आईसीयू) और वेंटिलेटर पर भर्ती मरीजों में संक्रमण होने का खतरा अधिक हो जाता है। अन्य मरीजों की तुलना में आईसीयू में भर्ती मरीजों को संक्रमण होने की आशंका पचास गुना अधिक होता है। इस प्रकार के संक्रमण से बचने के लिए विशेष सफाई की जानी चाहिए आैर इसका तीमारदारों को विशेष ध्यान रखना चाहिए। यह जानकारी किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के माइक्रोबायोलॉजी विभाग की डॉ. शीतल वर्मा ने
बृहस्पतिवार को माइक्रोबायोलॉजी विभाग की ओर से आयोजित स्वच्छता पखवाड़ा की कार्यशाला में दी। कार्यशाला में कुलपति प्रो. एमएलबी भट्ट भी मौजूद थे।
डॉ. वर्मा ने कहा कि आईसीयू में भर्ती मरीजों में रोग प्रतिरोधक क्षमता पहले से कम हो जाती है। ऐसे में आसानी से वह संक्रमण की चपेट में आ जाता है। इसमें खास कर निमोनिया की चपेट में मरीज आसानी से आ जाते हैं। क्लीनिकल में इसे वेंटिलेटर एसोसिएट निमोनिया कहते हैं। केजीएमयू मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एसएन शंखवार ने कहा कि गंभीर मरीजों के इलाज के लिए भर्ती 50 प्रतिशत मरीजों को कैथेटर लगाने की आवश्यकता पड़ती है। उन्होंने बताया कि मरीज के कैथेटर लगाने के बाद 95 फीसदी मरीजों को पेशाब संबंधी संक्रमण हो जाता है। उन्होंने बताया कि कैथेटर लगाने में पैरोमेडिकल स्टाफ व डॉक्टरों को प्रशिक्षित होने के अलावा लगाते वक्त सावधानी बरतने की जरूरत होती है।
दंत संकाय की डॉ. द्विव्या मेहरोत्रा ने कहा कि छोटी से छोटी बीमारी में लोग अपनी मर्जी से एंटीबायोटिक खा लेते हैं। पूरा कोर्स भी नहीं करते। आधे-अधूरे दवा के कोर्स ने नई मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। लोगों के शरीर में ड्रग रजिस्टेंश बन रहा है। गंभीर बीमारी होने पर एंटीबायोटिक दवाएं बेअसर साबित हो रही हैं। मरीजों के घाव में प्रयोग की जाने वाली एंटीसैप्टिक क्रीम बीमारी बांट रही है। क्रीम में तमाम तरह के बैक्टीरिया पनप रहे हैं। डॉ. विमला वैंक्टेश ने बताया कि अस्पताल के वातावरण में बैक्टीरिया और वायरस अधिक होते हैं। खुली क्रीम में बैक्टीरिया पनपने लगते है।
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