उत्तराखंड के पौढ़ी गढ़वाल स्थित पंचुर यमकेश्वर गांव के सामान्य परिवार में पांच जून, 1972 को जन्मे योगी आदित्यनाथ की जीवनयात्रा असामान्य रही। पिता आनंद सिंह बिष्ट ने जिस पुत्र का नाम अजय रखा, वह छोटी सी उम्र में ही अजेय संकल्प पथ पर बढ़ गया।
1993 में गोरखनाथ मंदिर पहुंचकर नाथ पंथ की परंपरा से जुड़कर योगी आदित्यनाथ बने शिष्य ने 1998 में गोरखपुर सांसद के रूप में गुरु महंत अवेद्यनाथ की राजनीतिक विरासत संभाली हो या फिर 1994 में उत्तराधिकारी के रूप में गोरक्षपीठाधीश्वर बने हों, वह धर्म के योगी और राजधर्म के अजेय कर्मयोगी साबित हुए।
एक ही सीट से लगातार पांच बार सांसद चुने जाने का इतिहास रचने वाले योगी आदित्यनाथ ने लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने का भी इतिहास उत्तर प्रदेश की राजनीति में 37 वर्ष बाद रच दिया है।
बाल्यकाल से राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रेरित योगी का जुड़ाव राम मंदिर आंदोलन से हो गया था। राम मंदिर आंदोलन के दौरान ही वह इस आंदोलन के नायक गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ के संपर्क में आए। गढ़वाल विश्वविद्यालय से स्नातक तक शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने संन्यासी बनने का निर्णय कर लिया।
मात्र 22 वर्ष की आयु में नाथ संप्रदाय की दीक्षा लेने वाले योगी आदित्यनाथ ने 15 फरवरी, 1994 को गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी के रूप में मठ का दायित्व संभाला। पीठाधीश्वर के रूप में अब तक धर्मध्वजा उठाए हुए योगी आदित्यनाथ ने राजनीति के पथ पर काफी पहले ही कदम बढ़ा दिया था।
राजनीतिक दायित्व भी उन्हें गोरक्षपीठ से विरासत में ही मिला। उनके दादागुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ ने गोरखपुर संसदीय क्षेत्र का एक बार प्रतिनिधित्व किया। उनके गुरु ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ गोरखपुर संसदीय क्षेत्र से चार बार सांसद और मानीराम विधानसभा क्षेत्र से पांच बार विधायक रहे। 1996 में गोरखपुर लोकसभा से चुनाव जीतने के बाद ही महंत अवेद्यनाथ ने घोषणा कर दी थी कि उनकी राजनीति का उत्तराधिकार योगी संभालेंगे।