ज़रा नजदीक आओ तो बहुत है दर्द सीने में,
बताओ में कहाँ जॉन नहीं है लुत्फ़ जीने में.
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मिझे आता नहीं है चैन इस दुनिया के मेले में,
खुद मिलता है बस मुझको किसी मक्का मदीने में।
तेरी यादें रुलाती है तेरी यादें सताती हैं,
हज़ारों दर्द मैंने दफ़न कर रख्खे हैं सीने में।
परेशां तुम अगर हो तो परेशां मैं भी हूँ लेकिन,
मेरे दिल में समाएं हो, रखा क्या आने जाने में।
मुझे “आभा” से नफरत हो नहीं सकती मैं कहता हूँ,
बहुत प्यारी सी है नाज़ुक शफ़ा उसको करीने में।
– “आभा”